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ये ऐसे हैं तो बाकी कैसे होंगे???
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इस बार मैं ऐसी बात लिख रहा हूँ, जो सुखद तो नहीं हैं लेकिन हैं कडवी सच्चाई। बहुत ही भारी मन से मैंने ये पोस्ट लिखी हैं। एक ऐसे मुद्दे पर मैं लिख रहा हूँ, जो समाज से काफी करीब से, गहराइयों से जुड़ा हुआ हैं।
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मेरा एक दोस्त हैं (गोपनीयता रखते हुए मैं उसका नाम नहीं लिख सकता) जोकि एक टांग से विकलांग हैं। पांच-छः साल तक वो एकदम ठीक था, लेकिन तभी अचानक उसे पोलियो हो गया और बड़ी मुश्किल से उसे पूर्ण-रूप से अपंग होने से बचाया जा सका। आज उसकी उम्र 24 साल हैं, वो लंगडा-लंगडा कर चलता हैं और लम्बी दुरी तय करने के लिए ट्राय-साइकल का उपयोग करता हैं। यह ट्राय-साइकल उसे बीकानेर की एक संस्था ने नि-शुल्क प्रदान की थी। अब उसकी करतूत भी जान लीजिये =
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जैसा की मैं पहले ही बता चूका हूँ कि-"वो मेरा पुराना दोस्त हैं और ट्राय-साइकल उपयोग करता हैं।" हाल ही में, वो मेरे घर आया एकदम नयी चमचमाती ट्राय-साइकल पर। मैंने उसे नयी साइकल लेने पर बधाई देते हुए उसकी चमकती-दमकती सायकल की तारीफ़ की। उसके बाद उसने मुझे जो बताया, उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।
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उसने कहा-"अरे नहीं-नहीं यार, ये सायकल मैंने खरीदी नहीं हैं। ये ट्रायसायकल तो मैंने हाल ही में लगे एक विकलांग शिविर से नि-शुल्क प्राप्त की हैं। तुझे शायद याद होगा, वो शिविर पिछले दो महीने पहले लगा था।" मैंने उससे पूछा कि-तेरे पास तो पहले से ही ट्रायसाइकल थी फिर तुने नयी क्यों ली?? और वो थी भी सही-दुरुस्त कंडीशन में??" तो वो हँसते हुए बोला-"यार वो सायकल तो मैंने दो हज़ार रूपये में किसी और विकलांग को बेच दी। दरअसल मुझे पैसो की सख्त आवश्यकता थी, तो मैंने वो सायकल अन्य विकलांग को सस्ते में दो हज़ार रूपये में ही बेच दी, नयी तीन हज़ार से ज्यादा की ही आती हैं। और हाल ही में लगे जयपुर वालो के शिविर में जाकर मैं ये नयी ट्राय-साइकल ले आया। बस इतनी सी ही बात हैं।"
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मैं बोला तो कुछ नहीं, लेकिन उसने मेरे मन में कई-अनुत्तरित सवाल छोड़ दिए। जैसे कि--
मुफ्त में मिली सायकल को इस तरह देकर उसने क्या साबित किया??
मुफ्त की सायकल को दो हज़ार में बेचकर वो सस्ती देने की बात कैसे कह सकता हैं??
जो सामाजिक-धार्मिक संस्थाएं विकलांगो की सहायता करती हैं उन्हें यह बात जानकर क्या झटका नहीं लगेगा??
इससे बेहतर तो वो किसी से उधार या क़र्ज़ ले लेता या अपनी ट्राय साइकल को गिरवी रख देता।
आजकल के घोर-कलयुगी, पापी जमाने में मुट्ठी भर लोग विकलांगो के लिए कुछ कर रहे हैं, क्या ये घटनाक्रम उन्हें हतोत्साहित नहीं करेगा???
अगर हरेक विकलांग ऐसा करने लग जायेंगे तो ये तो एक व्यापार का रूप ले लेगा। जोकि दुर्भाग्य होगा।
उन संस्थायों का क्या होगा, जो इस तरह के लोगो (विकलांगो) द्वारा आये दिन लुटते जायेंगे????
आज आम आदमी का विश्वास आये दिन झूठे-ढोंगी साधू-महात्माओं-बाबाओं द्वारा तोड़ा जा रहा हैं, तो क्या लोग विकलांगो पर विश्वास कर पायेंगे???
भिखारियों पर से लोगो का विश्वास-भरोसा पूरी तरह से तो नहीं लेकिन काफी हद तक कम जरूर हो गया हैं। कारण उनका झूठ-मूठ लंगडाना या हाथ मोड़ना या पट्टियां बांधकर कोढ़ी होने का नाटक करना, आदि।
भगवान् की दया से लोगो का विश्वास साधू-महात्माओं पर से जरूर उठ गया हैं, लेकिन विकलांगो पर अभी भी बना हुआ हैं।
बाहरी लोग या नकली लोग ऐसा करे तो और बात हैं, लेकिन जब असली लोग (विकलांग) ही ऐसा करने लगेंगे तो लोग कैसे उनपर विश्वास-भरोसा कायम रख पायेंगे???
आदि-आदि।
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मन में और भी ढेर सारे सवाल अनुत्तरित रह गए हैं, लेकिन फिलहाल इतना ही।
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धन्यवाद।
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FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
Monday, June 28, 2010
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